'नाम में क्या रखा है? जिसे हम गुलाब कहते हैं, किसी अन्य नाम से भी उसकी खुशबू उतनी ही अच्छी आएगी', शेक्सपियर के रोमियो और जूलियट का हवाला देते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को जिलों का नाम बदलने, औरंगाबाद और उस्मानाबाद से क्रमशः छत्रपति संभाजीनगर और धाराशिव, के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को खारिज कर दिया।

बेंच ने क्या कहा?
चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस आरिफ डॉक्टर की बेंच ने अपने फैसले में जूलियट का हवाला दिया। बेंच ने नामों की प्रकृति के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा कि एक नाम किसी भी चीज को नहीं बनाता है। भले ही गुलाब का नाम कुछ और रख दिया जाए लेकिन फूल की खुशबू नहीं बदलेगी, वह वही रहेगी। हालांकि याचिकाकर्ताओं ने इस पर असहमति जताई।

सरकार के फैसले को 'राजनीति से प्रेरित' बताया
नाम बदलने के खिलाफ याचिकाओं में सरकार के फैसले को 'राजनीति से प्रेरित' बताया गया था। महाराष्ट्र सरकार ने याचिकाओं का विरोध करते हुए दावा किया था कि दोनों स्थानों का नाम उनके इतिहास के कारण बदला गया है, न कि किसी राजनीतिक कारण से। 76 पेज के फैसले में पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र भूमि राजस्व संहिता राज्य सरकार को किसी भी राजस्व क्षेत्र को खत्म करने और क्षेत्र का नाम बदलने की अनुमति देता है।

2022 में मिली नाम बदलने की मंजूरी
1995 में ही औरंगाबाद शहर का नाम बदलने का प्रस्ताव रखा गया था लेकिन तब यह योजना रद्द कर दी गई थी। बाद में पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उसके बाद 2022 में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने औरंगाबाद का नाम छत्रपति संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने को मंजूरी दे दी थी। 

2023 में गृह मंत्रालय ने दिया नो ऑब्जेक्शन लेटर
16 जुलाई, 2022 को दो सदस्यीय कैबिनेट द्वारा नाम बदलने के लिए एक सरकारी प्रस्ताव पारित किया गया और फिर केंद्र सरकार को भेज दिया गया। फरवरी 2023 में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शहरों और जिलों के नाम बदलने के लिए नो ऑब्जेक्शन लेटर दे दिया जिसके बाद राज्य सरकार द्वारा औरंगाबाद और उस्मानाबाद के नाम बदलने के लिए एक गजट अधिसूचना जारी कर दी गई।

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